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श्रतिचार श्रालोचना
दैनिक 'अमर' सर्व पाप-दोष मिथ्या होवें, निशाऽभुक्ति व्रत में जो दूषण लगाया हो ॥
महाव्रत- भावना
पंच महाव्रत की न भावना पच्चीस पाली, होकर अति सुखशील आतमा करली काली । संयम की ले प्रोट खूब ही देह सँभाली, ऊपर ढोंग विचित्र होगया अन्दर खाली । गत भूलों पर तीव्रतम,
पुनि-पुनि पश्चात्ताप है । दुश्चरित्र मुनि संघ पर,
एक मात्र अभिशाप है ॥
पच्चीस मिथ्यात्व
अपने मिथ्या मत का भी अति श्राग्रह धारा, लड़ा कुतर्के स्पष्ट सत्य पर मत धिक्कारा । कभी ज्ञान तो कभी क्रिया एकान्त विचारा, लोकाचार-विमूढ मोक्ष का मार्ग बिसारा ।
पाँच-बीस मिथ्यात्व की,
करू अखिल आलोचना । मनसा चचसा कर्मणा,
योग-शुद्धि की योजना ||
गुरुजनों का विनय
पूजनीय गुरुजन की सेवा से मुख मोड़ा, आदर-सत्कारादि भक्ति का बन्धन तोड़ा ।
For Private And Personal
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