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देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि।
शब्दार्थ तिक्खुत्तो = तीन बार
कल्लाणं = श्राप कल्याण रूप हैं अायाहिणं = दाहिनी ओर से मंगलं = मंगलरूप हैं पयाहिणं = प्रदक्षिणा, श्रावर्तन देवयं देवता रूप है करेमि = करता हूँ
चेइयं - ज्ञान रूप हैं वंदामि = स्तुति करता हूँ पज्जुवासामि = (मैं) श्रापकी पयुनमसामि = नमस्कार करता हूँ पासमा सेवा भक्रि करता हूँ सक्कारेमि = सत्कार करता हूँ मस्थएएस मस्तक कानी मस्तक सम्माणेमि - सम्मान करता हूँ
मुका कर [श्राप कैसे है ? ] वंदामि वन्दना करता हूँ
भावार्थ
भगवन् ! दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके पुनः दाहिनी ओर तक आप की तीन बार प्रदक्षिणा करता हूँ।
वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, सस्कार करता हूँ, सम्मान करता हूँ।
श्राप कल्याण रूप हैं, मंगल रूप हैं। अप, देखता-सा हैं, चैतन्य स्वरूप = ज्ञानस्वरूप हैं ।
गुरुदेव ! श्रापकी [ मन वचन और शरीर से ] पर्युपासना सेवा भक्ति करता हूँ। विनय-पूर्वक मस्तक झुकाकर आपके चरण कमलों में वन्दना करता हूँ।
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