________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
(२)
पौरुषी-सूत्र उग्गर सूरे पोरिसिं पञ्चमवामि; चउब्धिहं पि आहारंअसणं, पाणं, खाइमं, साइमं ।
अन्नत्थ-ऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, सव्यसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि ।
भावाथ पौरुषी का प्रत्याख्यान करता हूँ । सूर्योदय से लेकर अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों ही अाहार का प्रहर दिन चढ़े तक त्याग करता हूँ।
अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिशामोह, साधु वचन, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार-उक्त छहों श्राकारों के सिवा पूर्णतया चारों आहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन सूर्योदय से लेकर एक पहर दिन चढ़े तक चारों प्रकार के श्राहार का त्याग करना, पौरुषी प्रत्याख्यान है। पौरुषी का शाब्दिक अर्थ है-- 'पुरुष प्रमाण छाया ।' एक पहर दिन चढ़ने पर मनुष्य की छाया
For Private And Personal