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श्रमण सूत्र
पौरुषी से कम ही होना चाहिए । श्राप कहेंगे कि पौरुषी के कालमान से कम तो दो मुहूर्त भी हो सकते हैं ? फिर एक मुहूर्त ही क्यों ? उत्तर है कि नमस्कारिका में पौरुषी आदि अन्य प्रत्याख्यानों की अपेक्षा सब से कम, अर्थात् दो ही आकार हैं; अतः अल्पाकार होने से इसका कालमान बहुत थोड़ा माना गया है और वह परंपरा से एक मुहूर्त है । अद्धाप्रत्याख्यान का काल कम से कम एक मुहूर्त माना जाता है।
नमस्कारिका, रात्रिभोजन-दोष की निवृत्ति के लिए है। अर्थात् प्रातः काल दिनोदय होते ही मनुष्य यदि शीघ्रता में भोजन करने लगे
और वस्तुतः सूर्योदय न हुआ हो तो रात्रि भोजन का दोष लग सकता है । यदि दो घड़ी दिन चढ़े तक के लिए श्राहार का त्याग नमस्कारिका के द्वारा कर लिया जाय तो फिर रात्रि-भोजन की संभावना नहीं रहती। दूसरी बात यह है कि साधक के लिए तप की साधना करना आवश्यक है; प्रतिदिन कम से कम दो धड़ी का तप तो होना ही चाहिए । नमस्कारिका में यह नित्य प्रति के तपश्चरण का भाव भी अन्तर्निहित है।।
दूसरों को प्रत्याख्यान कराना हो तो मूल पाठ में 'पञ्चक्खाइ' और 'वोसिरह' कहना चाहिए। यदि स्वयं करना हो, तो उल्लिखित पाठानुसार 'पञ्चक्खामि' और 'वोसिरामि' कहना चाहिए । श्रागे के पाठों में भी यह परिवर्तन ध्यान में रखना चाहिए। ___यही पाठ सांकेतिक अर्थात् संकेत पूर्वक किए जाने वाले प्रत्याख्यान का भी है। वहाँ केवल 'गंठिसहियं' या 'मुट्ठिसहिय' आदि पाठ नमुक्कार सहियं के आगे अधिक बोलना चाहिए। गंठिसहियं और मुट्ठिसहियं का यह भाव है कि जब तक बँधी हुई गाँठ अथवा मुट्ठी आदि न खोलूँ तब तक चारों आहार का त्याग करता हूँ।
१-'गंठिसहियं, मुट्ठिसहियं' आदि सांकेतिक प्रत्याख्यान पाठ में 'महत्तरागारेणं सव्यसमाहिवत्तियागारेणं' ये दो आगार अधिक बोलने चाहिएँ। यह सांकेतिक प्रत्याख्यान अन्य समय में भी किया जा सकता
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