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एकाशन-सूत्र
विवेचन
एकाशन
पौरुपी या पूर्वार्द्ध के बाद दिन में एक बार भोजन करना, सप होता है । एकाशन का अर्थ है- "एक + अशन, अर्थात् दिन में एकबार भोजन करना ।' यद्यपि मूल पाठ में यह उल्लेख नहीं है कि-'दिन में किस समय भोजन करना । फिर भी प्राचीन परंपरा है कि कम से कम एक पहर के बाद ही भोजन करना चाहिए | क्योंकि एकाशन में पौरुषीतप अन्तर्निहित है ।
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प्रत्याख्यान, गृहस्थ तथा श्रावक दोनों के लिए समान ही हैं । त एव गृहस्थ तथा साधु दोनों के लिए एकाशन तब में कोई अन्तर नहीं माना जाता है। हाँ गृहस्थ के लिए यह ध्यान में रखने की बात है कि'वह एकाशन में चित्त अर्थात् प्रासूक आहार पानी ही ग्रहण करे ।' साधु को तो यावज्जीवन के लिए प्रासुक आहार का त्याग ही है ।
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१ – 'एगासण' प्राकृत शब्द है, जिसके संस्कृत रूपान्तर दो होते हैं 'एकाशन' और 'एकासन ।' एकाशन का अर्थ है - एक बार भोजन करना, और एकासन का अर्थ है— एक आसन से भोजन करना । 'एगास' में दोनों ही अर्थ ग्राह्य हैं । 'एकं सकृत् अशनं भोजनं एकं वा श्रासनं --- पुताचलनतो यत्र प्रत्याख्याने तदेकाशनमेकासनं वा, प्राकृते द्वयोरपि एग समिति रूपम् । - प्रवचनसारोद्वार वृत्ति ।
आचार्य हरिभद्र एकासन की व्याख्या करते हैं कि एक बार बैठकर फिर न उठते हुए भोजन करना । ' एकाशनं नाम सकृदुपविष्ट पुता चालनेन भोजनम् ।' श्रावश्यक वृत्ति '
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आचार्य जिनदास कहते हैं-- एगासग में पुत = नितंब भूमि पर लगे रहने चाहिएँ, अर्थात् एक बार बैठकर फिर नहीं उठना चाहिए । हाँ, हाथ और पैर आदि आवश्यकतानुसार श्राकुञ्चन प्रसारण के रूप में हिलाए - डुलाए जा सकते हैं । 'एगासणं नाम पुता भूमीतो न चालिस 'ति, सेसारि हत्थे पायादि चालेनावि । आवश्यक चूर्णि