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श्रमण-सूत्र
चिन्तन करे। इतने पर भी यदि अच्छी तरह निद्रा दूर न हो तो श्वास को रोककर उसे दूर करे और द्वार का अवलोकन करे--अर्थात् दरवाजे की ओर देख ।
चत्तारि मंगलंअरिहंता मंगलं; सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपनत्तो धम्मो मंगलं ॥४॥
भावार्थ
चार मंगल हैं, अरिहन्त भगवान् मंगल हैं, सिद्ध भगवान् मंगल है, पांच महाव्रतधारी साधु मंगल हैं, केवल ज्ञानी का कहा हुआ हिसा श्रादि धर्म मंगल है।
चत्तारि लोगुत्तमाअरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा; साहू. लोगुत्तमा, केवलिपन्नतो धम्मो लोगुत्तमो ॥३॥
भावार्थ: चार संसार में उत्तम हैं-अरिहन्त भगवान उत्तम हैं, सिद्ध भगवान् उत्तम हैं, साधु मुनिराज उत्तम हैं, केवली का कहा हुआ धर्म उत्तम है।
चत्तारि सरणं पवज्जामिअरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि; साह सरण पवज्जामि, केवलिपनत्तं धम्मसरण पवज्जामि।।६।।
भावार्थ चारों की शरण अंगीकार करता हूँ-अरिहंतों की शरण अंगीकार करता हूँ, सिद्धों की शरण अंगीकार करता हूँ, साधुओं की शरण अंगीकार करता हूँ, केवली-द्वारा प्ररूपित धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ।
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