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श्रमण-सूत्र
( ७ )
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अभक्तार्थ = उपवास
- सूत्र
उग्गए सूरे, अभत्तदु पच्चक्खामि चउच्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं साइमं ।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिट्ठाधशियामारेशं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि । भावार्थ
सूर्योदय से लेकर अभक्तार्थ - उपवास ग्रहण करता हूँ; फलतः अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों ही आहार का त्याग करता हूँ ।
अनाभोग, सहसाकार, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सव समाधि प्रत्ययाकार -- उन पाँच श्रागारों के सिवा सब प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ ।
विवेचन व्यभक्तार्थ, उपवास का ही पर्यायान्तर है । 'भक्त' का अर्थ 'भोजन' है। 'अर्थ' का अर्थ 'प्रयोजन' है। '' का अर्थ 'नहीं' है । तीनों का मिलकर अर्थ होता है-भक्त का प्रयोजन नहीं है जिस व्रत में वह उपवास । 'न विद्यते भक्रार्थो यस्मिन् प्रत्याख्याने सोsभकार्थः स उपवासः - देवेन्द्र कृत श्राद्ध प्रतिक्रमण वृत्ति ।
उपवास के पहले तथा पिछले दिन एकाशन हो तो उपवास के पाठ में ''वउत्थभत्तं प्रभत्तट्ठ' दो उपवास में 'छट्टभत्तं श्रभत्तट्ट' तीन
१' भक्रन - भोजनेन अर्थः- प्रयोजनं भक्रार्थः, न भक्रार्थोऽ भक्रार्थः । अथवा न विद्यते भवार्थो यस्मिन् प्रत्याख्यानविशेषे सोऽभवार्थः उपवास इत्यर्थः ।" -- प्रवचन सारोद्धार वृत्ति ।
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