________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
याचाम्ल-सूत्र
३२५
श्राचार्य भद्रबाहु स्वामी ने श्रावश्यक नियुक्ति में लिखा है-- "गोरणं नामं तिविहं, प्रोत्रण कुम्मास सत्तुमा चेव ॥".-गाथा १६०३ ॥
प्राचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत गाथा पर व्याख्या करते हुए अाबश्यकवृत्ति में लिखा है-'श्रायामाम्लमिति गोषणं नाम । प्राधान:-अचजायनं श्राम्लं चतुर्थरसः, ताभ्यां नितं श्राबामाम्लम् । इदं पोष चिभेदात् त्रिविधं भवति, श्रोदनः, कल्माष.:, सक्तवव । ___ आयंबिल प्राकृत भाषा का शब्द है। प्राचार्य हरिभद्र इसके संस्कृत रूपान्तर अायामाम्ल, प्राचामाम्ल और अाचाम्ल करते हैं ।
श्राचार्य सिद्धसेन आचाम्ल और श्राचामाम्ल रूपों का उल्लेख करते हैं। प्राचामाम्ल की व्याख्या करते हुए श्राप लिखते हैं'प्राचामः-'अचमणं अम्ल चतुर्थो रसः, ताभ्व वित्तमित्यण । एतच्च त्रिविधं उपधिभेदात्, तद्यथा-मोदनं कुल्माषान् सक्चूच अधिकृत्य भवति ।'--प्रवचनसारोद्धार वृत्ति ।।
प्राचार्य देवेन्द्र श्राद्ध प्रतिक्रमण वृत्ति में लिखते हैं.---'मायामोऽवश्रावण अग्लं चतुर्थो स्सः, एते व्याने प्रायो यन्त्र भोजने प्रोदन कुल्माषसक्तुप्रभृतिके तदाचाम्लं समयभाषयोच्यते । ___ एकाशन और एक स्थान की अपेक्षा आयंबिल का महत्त्व अधिक है । एकाशन और एक स्थान में तो एक बार के भोजन में यथेच्छ सरस आहार ग्रहण किया जा सकता है; परन्तु प्रायबिल के एक बार भोजन में तो केवल उबले हुए उड़द के बाकले अादि लवणरहित नीरस श्राहार ही ग्रहण किया जाता है। अाजकल भुने हुए चने अादि एक नीरस अन्न को पानी में भिगोकर खाने का भी प्रायग्लि प्रचलित है । किं बहुना, भावार्थ यह है कि प्राचाम्ल तप में रसलोलुपता पर विजय प्राप्त करने का महान् प्रादर्श है। जिह्वन्द्रिय का संग्रम, एक बहुत बड़ा संयम है।
१ अवश्रामण, अवशायन या अवश्रावण 'श्रोस:पण' को कहते हैं ।
For Private And Personal