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श्रमण-सूत्र
उसी समय भोजन करना छोड़ देना चाहिए । पौरुपी पूर्ण जानकर भ भोजन करता रहे तो प्रत्याख्यान भंग का दोष लगता है ।
पौरुषी के समान ही सार्ध पौरुपी का प्रत्याख्यान भी होता है । इसमें डेढ़ पहर दिन चढ़े तक आहार का त्याग करना होता है । अस्तु, जब उक्त सार्धं पौरुषी का प्रत्याख्यान करना हो तब 'पोरिसि' के स्थान पर 'साढ पोरिसिं' पाठ कहना चाहिए ।
आज कल के कुछ लेखक पौरुषी के पाठ में 'महत्तरागारेण' का पाठ बोलकर छह की जगह सात श्रागार का उल्लेख करते हैं; यह भ्रान्ति पर अवलम्बित हैं । हरिभद्र आदि श्राचार्यों की प्राचीन परंपरा, पौरुषी में केवल छह ही ग्रागार मानने की है ।
साधु सशक्त हो तो उसे पौरुषी आदि चउविहार ही करने चाहिएँ । यदि शक्ति न हो तो तिविहार भी कर सकता है । परन्तु दुविहार पौरुषी कदापि नहीं कर सकता । हाँ, श्रावक दुविहार भी कर सकता है। इसके लिए प्राचार्य देवेन्द्र कृत श्राद्ध प्रतिक्रमण वृत्ति देखनी चाहिए |
यदि पौरुषीतिविहार करनी हो तो 'तिवि हं पि श्राहारं असणं, खाइमं साइमं पाठ बोलना चाहिए । यदि श्रावक दुविहार पौरुषी करे
"
तो 'दुविपि श्राहारं असणं खाइम' ऐसा पाठ बोलना चाहिए।
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