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क्षामणा-सूत्र
२५६ शब्दार्थ
सव्वं = सब अपराध को पायरिय = श्राचार्य पर
खमावइत्ता-क्षमा कराकर उवज्झाए = उपाध्याय पर अयपि = मैं भी सीसे-शिष्य पर
सव्यस्त = (उनके) सब अपराध को साहम्मिए = सार्मिक पर खमामि = क्षमा करता हूँ। कुल-कुल पर गणे = गण पर
सव्व सब मे = मैंने
जीवे =जीवों को जे-जो
खामेमि = क्षमा करता हूँ केह= कोई
सव्वे सब कसाया = कषाय किए हों
जीवा=जीव सव्वे-उन सबको तिविहेण = त्रिविध रूप से खामेमि= खिमाता हूँ।
खमतु-तमा करें
सव्वभूएसु-सब जीवों पर सीसे =शिर पर
मे-मेरी अंजलिं = अञ्जलि
मेत्ती = मित्रता है करित्र करके
केणइ% किसी के साथ भगवनो-पूज्य
मज्झ= मेरा सव्वस्स = सब
वेरं = वैरभाव समण सघस्स-श्रमण संघ से न% नहीं है।
(अपने)
भावार्थ श्राचार्य, उपाध्याय. शिष्य, साधर्मिक कुल और गण, इनके ऊपर मैंने जो कुछ भी कषाय भाव किए हों, उन सब दुराचरणों की मैं मन, वचन और काय से क्षमा चाहता हूँ॥१॥
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