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द्वादशावर्त गुरुवन्दन सूत्र
२८६ द्वेष, दुर्भाव, घृणा तथा अवज्ञा का होना, मनोदुष्कृता अाशातना है । इसी प्रकार अभद्र वचन आदि से वागदुकृता तथा ग्रासन्न गमनादि के निमित्त से कायदुष्कृता आशातना होती है । क्रोधा ___ मूल में 'कोहा? शब्द है, जिसका तृतीया विभक्ति के रूप में 'कोहाए प्रयोग किया गया है। 'कोहा' का संस्कृत रूपान्तर 'क्रोधा' होता है । क्रोधा का अर्थ क्रोध नहीं, अपितु क्रोधानुगता अर्थात् क्रोधवती अाशातना से है । क्रोध के निमित्त से होने वाली आशातना क्रोधा अर्थात् क्रोधवती कहलाती है।
'क्रोधा' का 'क्रोधवती' अर्थ कैसे होता है ? समाधान है कि अर्शादिगण प्राकृति गण माना जाता है, अतः क्रोधादि को अर्शादिगण में मान कर अच् प्रत्यय होने से क्रोधयुक्त का भी क्रोध रूप ही रहता है। पाशातना स्त्रीलिंग शब्द है, अतः क्रोधा' रूप का प्रयोग किया गया है ।
-'क्रोधयेति क्रोधषयेति प्राप्ते अर्शादेराकृतिगणत्वात् अच् प्रत्ययान्तस्यात् 'क्रोधया' क्रोधानुगतया ।'-प्राचार्य हरिभद्र ।।
'क्रोधया के समान ही मानया, मायया और लोभया का मर्म भी समझ लेना चाहिए । सब में अर्शादि अच् प्रत्यय है, अतः मानवत्या, मायावत्या और लोभवस्या अर्थ ही ग्राह्य है । सार्वकालिकी
आशातना के लिए यह विशेषण बड़ा ही महत्त्वपूर्ण अर्थ रखता है। शिष्य गुरुदेव के चरणों में आशातना का प्रतिक्रमण करता हुआ निवेदन करता है कि 'भगवन् ! मैं दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक तथा सांवत्सरिक अाशातना के लिए क्षमा चाहता हूँ और उसका
प्रतिक्रमण करता हूँ। इतना ही नहीं, अबतक के इस जीवन में जो . अपराध हुआ हो, उसके लिए भी क्षमा याचना है। प्रस्तुत जीवन ही नहीं, पूर्व जीवन और उससे भी पूर्व जीवन, इस प्रकार अनन्तानन्त
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