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द्वादशावर्त गुरुवन्दन-सूत्र
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दूसरा खमासमणो भी इसी प्रकार पढ़ना चाहिए । केवल इतना अन्तर है कि दूसरी बार 'श्रावस्सियाए' पद नहीं कहा जाता है, और अवग्रह से बाहर न पाकर वहीं संपूर्ण खमासमणो पढ़ा जाता है। तथा अतिचार-चिन्तन एवं श्रमण सूत्र नमो चउवीसाए-पाठान्तर्गत 'तस्स धम्मस्स' तक गुरु चरणों में ही पड़ने के बाद 'अभुट्टिप्रोमि' कहते हुए, उठ कर बाहर पाना चाहिए ।
प्रस्तुत पाठ में जो 'बहुसुमेण भे दिवसो वइक्कतो' के अंश में "दिवसो वइक्कतो' पाठ है, उसके स्थान में रात्रिक प्रतिक्रमण में 'राई वइकंता' पाक्षिक प्रतिक्रमण में 'पक्खो वइक्कतो' चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में 'चडमासी वइक्कंता' तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 'संवच्छरो वइक्कंतो' ऐसा पाठ पढ़ना चाहिए । वन्दन के २५ आवश्यक __श्री समवायांग सूत्र के १२ वे समवाय में वन्दन स्वरूप का निर्णय देते हुए भगवान् महावीर ने वन्दन के २५ अावश्यक बतलाए हैं :
दुओ णयं जहाजायं,
किति-कम्मं बारसावयं । चउसिरं तिगुरां च,
दुपवेसं एग-निक्खमणं । -'दो अवनत, एक यथाजात, बारह आवर्त, चार शिर, तीन गुप्ति, दो प्रवेश और एक निष्क्रमण-इस प्रकार कुल पच्चीस आवश्यक हैं।'
स्पष्टीकरण के लिए नीचे देखिए :दो अवनत
अवग्रह से बाहर रहा हुआ शिष्य सर्व प्रथम पनच चढ़ाए हुए धनुष के समान अर्धावनत होकर 'इच्छामि खमासमणो व दिलं जाव णिजाए निसीहियाए' कहकर गुरुदेव को वन्दन करने की इच्छा का
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