________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
द्वादशावर्त गुरुवन्दन सूत्र
२७६ नषेधिकी।
. मूल शब्द 'निसीहिया' है । इसका मस्कृत रूप 'नैपेधिकी' होता है। प्राणातिपातादि पापों से निवृत्त हुए शरीर को नैघोधिकी कहते हैं । देखिए, याचार्य हरिभद्र क्या कहते हैं ? 'निषेधनं निषेधः, निषेधेन निवृत्ता नैवेधिकी, प्राकृतशैल्या छान्दसत्वाद् वा नैवेषिकेत्युच्यते । ..."नषेधिक्या-प्राणातिपातादिनिवृत्तया तन्वा शरीरेणेत्यर्थः ।' __ प्राचार्य जिनदास नैपोधिकी के शरीर, वसति = स्थान और स्थण्डिल भूमि-इस प्रकार तीन अर्थ करते हैं । मूलतः नैषधिकी शब्द अालय = स्थान का वाचक है। शरीर भी जीव का ग्रालय है, अतः वह भी नैषधिको कहलाता है। इतना ही नहीं, निषिद्ध आचरण से निवृत्त शरीर की क्रिया भी नैपधिकी कहलाती है।
जैन धर्म की पवित्रता स्नान आदि में नहीं है । वह है पापाचार से निवृत्ति में, हिंसादि से विरति में । अतः शिष्य गुरुदेव से कहता है कि "भगवन् ! मैं अपवित्र नहीं हूँ, जो श्रापको वन्दन न कर सकूँ। मैंने हिंसा, असत्य अादि पापों का त्याग किया हुआ है, अहिंसा एवं सत्य
१ निषध का अर्थ त्याग है। मानव शरीर त्याग के लिए ही है, यह जैन धर्म का अन्तहृदय है और इसीलिए वह शरीर को भी नैधिकी कहता है। नैपोधिकी का अर्थ है जीवहिंसादि पापाचरणों का निषेध अर्थात् निवृत्ति करना ही प्रयोजन है जिसका वह शरीर । - नैपोधिकी का जो धापनीया विशेषण है, उसका अर्थ है जिससे कालक्षेप किया जाय, समय बिताया जाय, वह शारीरिक शक्ति यापनीया कहलाती है।
दोनों का मिल कर अर्थ होता है कि "मैं अपनी शक्ति से सहित त्याग प्रधान नैषधिकी शरीर से वन्दन करना चाहता हूँ !"
नैषधिकी और यापनीया का कुछ प्राचार्यों द्वारा किया जाने वाला यह विश्लेषण भी ध्यान में रखना चाहिए। ..
For Private And Personal