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श्रमण-सूत्र
मुक्त हो जाय ! 'मा तेषामपि अशान्तिप्रत्ययः कमबन्धो भवतु, इति करुणयेदमाह'-प्राचार्य हरिभद्र ।
प्राचार्य जिनदास और हरिभद्र ने क्षामणा-सूत्र में केवल एक ही 'खामेमि सव्वजीवे' की गाथा का उल्लेख किया है। परन्तु कुछ हस्तलिखित प्रतियों में प्रारम्भ की दो गाथाएँ अधिक मिलती हैं | गाथाएँ अतीव सुन्दर हैं, अतः हम उन्हें मूल पाठ के रूप में देने का लोभ सवरण नहीं कर सके।
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