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प्रतिज्ञा-सूत्र
मिद्धि मगं - सिद्धि का मार्ग है सदहामि = श्रद्धा करता हूँ मुत्ति मग्गं = मुक्रि का मार्ग है पत्तियामि = प्रतीति करता हूँ निजाणमग्गं = संसार से निकलने रोएमि = रुचि करता हूँ
___ का मार्ग है, मोक्ष फासेमि = स्पर्शना करता हूँ
स्थान का मार्ग है पालेमि=पालना करता हूँ निव्वाण मग्गं = निर्वाण का मार्ग अणु = विशेष रूप से
है, परम शान्ति पालेमि = पालना करता हूँ
का कारण है तं = उस अवितहं = तथ्य है, यथार्थ है धम्म = धर्म की अविसधि = अव्यवच्छिन्न है, सदा सदहंतो= श्रद्धा करता हुश्रा
शाश्वत है पत्तियतो = प्रतीति करता हुआ सब-सब
रोतो= रुचि करता हुआ दुक्ख = दुःखों के
फासतो = स्पर्शना करता हुआ प्पहीगा - क्षय का
पालंता : पालना करता हुश्रा मग्गं = माग है
अणु-विशेष रूप से इत्थं = इसमें
पालंतो-पालना करता हुश्रा ठिया -- स्थित हुए
तस्स = उस जीरा - जीव
धम्मस्स = धर्म की सिझति = सिद्ध होते हैं
याराहणाए = अाराधना में बुज्झति = बुद्ध होते हैं अब्भुठ्ठिोमि-उपस्थित हुअा हूँ मुच्चंति = मुक्क होते हैं विराहणाए = विराधना से परिनिव्वायंति-निर्वाण को प्राप्त होते हैं विरोमि = निवृत्त हुभा हूँ सब्बदुक्खाण = सब दुःखों का असजम = असंयम को अन्तं - अन्त, क्षय
परियाणामि =जानता हूँ एवं करेन्ति = करते हैं
त्यागता हूँ तं = उस
सजम = संयम को बम्न = धर्म की
उस पजामि = स्वीकार करता हूँ
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