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श्रमण-सूत्र
तार्थ कर्मविच्युतिः ।' जब प्रात्मा कर्म बन्धन से मुक होता है, तभी वह पूर्ण शुद्ध प्रात्म-स्वरूप की प्राप्ति करता है । निर्याण मार्ग __ श्राचार्य हरिभद्र निर्माण का अर्थ मोक्षपद करते हैं। जहाँ जाया जाता है वह यान होता है। निरुपम यान निर्याण कहलाता है । मोक्ष ही ऐसा पद है, जो सर्व श्रेष्ठ यान = स्थान है, अतः वह जैन श्रागम साहित्य में निर्याणपदवाच्य भी है । "यान्ति तदिति यानं 'कृत्यलुटो बहुलं' (पा० २-३-११३) इति वचनात्कर्मणि ल्युट । निरुपम यानं निर्याण, ईपच्याम्भारात्यं मोक्षपदमित्यर्थः ।"
प्राचार्य जिनदास निर्माण का अर्थ 'ससार से निर्गमन' करते हैं । 'निर्याण संसारात्पलायणं ।' सम्यग् दर्शनादि धम ही अनन्तकाल से भटकते हुए भव्य जीवों को सौंसार से बाहर निकालते हैं । अतः संसार से बाहर निकलने का मार्ग होने से सम्भग दर्शनादि धर्म निर्माण मान कहलाता है। निर्वाण मागे
__ सब कर्मों के क्षय होने पर आत्मा को जो कभी नष्ट न होने वाला श्रात्यन्तिक आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है, वह निर्वाण कहलाता है। प्राचार्य हरिभद्र कहते हैं - 'निति निर्वाण'-सकल कर्मक्षयजमात्यतिक सुखमित्यर्थः ।'
प्राचार्य जिनदास यात्म-स्वास्थ्य को निर्वाण कहते हैं। प्रात्मा कम रोग से मुक्त होकर जब अपने स्वस्वरूप में स्थित होता है, पर परिणति से हटकर सदा के लिए स्वपरिणति में स्थिर होता है, तब वह स्वस्थ कहलाता है । इस अात्मिक स्वास्थ्य को ही निर्वाण कहते है।
देखिए, यावश्यक चूणि प्रतिक्रमणाध्याय--"निव्वाण निव्यत्ती श्रात्म-स्वास्थ्यमित्यर्थः ।" . बौद्ध दर्शन में भी जैन परंपरा के समान ही निर्वाण शब्द का प्रचुर प्रयोग हुआ है। जैन दर्शन की साधना के समान बोद्ध दर्शन की
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