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श्रमण-सूत्र
नहीं भूले थे; अतएव उन्होंने खुले हृदय से भगवान ऋषभदेव को स्तुति गान किया है।
अनर्वाणं वृषभं मन्द्रजिह्व, बृहस्पतिं वर्धया नव्यमर्के ।
-ऋग्० म० १ सू० १६० म० १ श्रर्थात् मिष्टभाषी, ज्ञानी, स्तुतियोग्य पभ को पूजा-साधक मन्त्रों द्वारा वर्धित करो।
अंहोमुचं वृपों यज्ञियानां,
विराजन्तं प्रथममध्वराणाम् । श्रयां न पातमश्विना हुवे धिय, इन्द्रियेण इन्द्रियं दत्तमोजः ॥
-अथर्ववेद कां० १६ । ४२ ३ ४ अर्थात् सम्पूर्ण पापों से मुक्त तथा अहिंसक व्रतियों के प्रथम राजा, श्रादित्यस्वरूप, श्रीऋषभदेव का मैं आवाहन करता हूँ। वे मुझे बुद्धि एवं इन्द्रियों के साथ बल प्रदान करें।
नाभेरसावृषभ पास सुदेवसू नुर्यो वै चचार समदृग् जडयोगचर्याम् । यत्पारहस्यमृषयः पदमामनन्ति, स्वस्थः प्रशान्तकरणः परिमुक्त-संगः ॥
–श्रीमद्भागवत २ । ७ । १० वेद और भागवत क्या, अन्य भी वायु पुराण, पद्म पुराण आदि में भगवान् ऋषभदेव की स्तुति की गई है। इन प्रमाणों से जाना जाता है कि-भगवान् ऋपभदेव समस्त भारतवर्ष के एक मात्र पूज्य
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