________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२२८
श्रम गा सूत्र
भव्यात्माओं के लिए हितकर हो तथा सद्भूत हो, वह सत्य होता है ।। 'सद्भ्यो हितं सच्च, सदभूतं वा सच्चं ।'
जैन धर्म वैज्ञानिक धर्म है। उसका सिद्धान्त पदार्थ विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है । जड़ और चैतन्य तत्त्व का निरूपण, जिन शासन में इस प्रकार किया गया है कि जो आज भी विद्वानों के लिए चमत्कार की वस्तु है। अहिंसावाद, अनेकान्तवाद और कम वाद आदि इतने ऊँचे और प्रामाणिक सिद्धान्त हैं कि आज तक के इतिहास में कभी मुठलाए नहीं जा सके। झुठलाए जाएँ भी कैसे ? जो सिद्धान्त सत्य की सुदृढ़ नींव पर खड़े किए गए हैं, वे त्रिकालाबाधित सत्य होते हैं, तीन काल में भी मिथ्या नहीं हो सकते । देखिए, विदेशी विद्वान् भी जैन धर्म की सत्यता और महत्ता को किस प्रकार आदर को दृष्टि से स्वीकार करते हैं :
पौर्वात्य दर्शनशास्त्र के सुप्रसिद्ध फ्रांसीसी विद्वान् डाक्टर ए० गिरनाट लिखते हैं-"मनुष्यों की उन्नति के लिए जैन धर्म में चारित्र सम्बन्धी मूल्य बहुत बड़ा है। जैनधर्म एक बहुत प्रामाणिक, स्वतंत्र और नियमरूप धर्म है।"
पूर्व और पश्चिम के दर्शन शास्त्रों के तुलनात्मक अभ्यासी इटालियन विद्वान् डाक्टर एल० पी० टेसीटरी भी जैन धर्म की श्रेष्ठता स्वीकार करते हैं-"जैन धर्म बहुत ही उच्च कोटि का धम है । इसके मुख्य तत्त्व विज्ञान शास्त्र के आधार पर रचे हुए हैं। यह मेरा अनुमान ही नहीं, बल्कि अनुभव मूलक पूर्ण दृढ़ विश्वास है कि ज्यों ज्यों पदार्थ विज्ञान उन्नति करता जायगा, त्यो त्यों जैन धर्म के सिद्धान्त सत्य सिद्ध होते जायँगे।"
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, भारत के सर्वप्रथम भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, सरदार पटेल आदि ने भी जैन-धम की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है और उसके सिद्धांतों की सत्यता के लिए अपनी स्पष्ट सम्मति प्रकट की है। सबके लेखों को
For Private And Personal