________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
भयादि-सूत्र
परिभाषा ( ८ ) वीर्य ( ६ ) धर्म (१०) समाधि ( ११ ) मार्ग ( १२ ) समवसरण (१३) याथातथ्य (१४) ग्रन्थ (१५) श्रादानीय (१६) गाथा ।
१८१
ये सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के गाथा षोडशक - सोलह अध्ययन हैं । अध्ययनोक्त श्राचार-विचार का भलीभाँति पालन न करना, अतिचार है ।
सतरह असंयम
(१६) पृथिवीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, और वनस्पतिकाय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवों की हिंसा करना, कराना, अनुमोदन करना ।
(१०) अजीव श्रसंयम = जीव होने पर भी जिन वस्तुओंों के द्वारा संयम होता है, उन बहुमूल्य वस्त्रपात्र आदि का ग्रहण करना जीव संयम है ।
(११) प्रक्षा संयम = जीव सहित स्थान में उठना बैठना, सोना यादि ।
(१२) उपेक्षा श्रसंयम - गृहस्थ के पाप कर्मों का अनुमोदन करना । (१३) अपहृत्य श्रसंयम = विधि से परठना । इसे परिष्ठापना संयम भी कहते हैं ।
(१४) प्रमार्जना श्रसंयम = वस्त्रपात्र आदि का प्रमार्जन न करना । (१५) मनः श्रसंयम = मन में दुर्भाव रखना । (१६) वचन असंयम = कुवचन बोलना । (१७) काय असंयम = गमनागमनादि में सावधान रहना । ये सतरह संयम समवायांग सूत्र में कहे गए हैं ।
For Private And Personal
असंयम के अन्य भी सत्तरह प्रकार हैं- हिंसा, असत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, परिग्रह, पाँचों इन्द्रियों की उच्छ ङ्खल प्रवृत्ति, चार कषाय और तीन योगों की अशुभ प्रवृत्ति ।
श्राचार्य हरिभद्र ने आवश्यक में 'असं' जमे' के स्थान में