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श्रमण-सूत्र
प्राचार का अर्थ प्रथम अंग सूत्र है। उसका प्रकल्प अर्थात् अध्ययनविशेष निशीथ सूत्र याचार प्रकल्प कहलाता है। अथवा ज्ञानादि साधुप्राचार का प्रकल्प अर्थात् व्यवस्थापन आचार-प्रकल्प कहा जाता है। 'प्राचारः प्रथमाङ्ग तस्य प्रकल्पः अध्ययन विषो निशीथमित्यपराभिधानम् । प्राचारस्य वा साध्वाचारस्य ज्ञानादिविषयस्य कल्पो व्यवस्थापनमिति प्राचारप्रकल्पः ।
उत्तराध्ययन-सूत्र के चरण विधि अध्ययन में केवल प्रकल्प शब्द ही पाया है। अतः उक्त सूत्र के टीकाकार आचार्य शान्तिसूरि प्रकल्प का अर्थ करते हैं कि 'प्रकृष्ट = उत्कृष्ट कल्प - मुनि जीवन का प्राचार वर्णित है जिस शास्त्र में वह अाचारांग-सूत्र प्रकल्प कहा जाता है।'
अाचारांग-सूत्र के शस्त्र परिज्ञा प्रादि २५ अध्ययन हैं । और निशीथ सूत्र भी अाचारांग-सूत्र की चूलिकास्वरूप माना जाता है, अतः उसके तीन अध्ययन मिलकर याचागंग-सूत्र के सब अट्ठाईस अध्ययन होते हैं
(१) शस्त्र परिज्ञा ( २) लोक विजय ३) शीतोष्णीय ( ४) सम्यक्त्व ( ५ ) लोकसार ( ६ धूताध्ययन (७) महापरिज्ञा (८) विमोक्ष (६) उपधानश्रुत ( १० ) पिण्डेपणा (११) शय्या ( १२ ) ईर्या (१३ ) भाषा ( १४ ) वस्त्र पणा (१५ ) पात्र पणा ( १६) अवग्रहप्रतिमा (१६ + ७ = २३ ) सप्त स्थानादि सप्तकका ( २४ ) भावना ( २५ ) विमुक्ति (२६) उद्बात (२७ ) अनुद्धात ( २८ ) और अारोपण।
समवायांग-सूत्र में प्राचार प्रकल्प के अट्ठाईस भेद अन्यरूप में हैं।
पूज्य श्री श्रात्मारामजी महाराज, उत्तराध्ययन सूत्र हिंदी पृष्ठ १४०१ पर इस सम्बन्ध में लिखते हैं---
"समवायांग सूत्र में २८ : कार का प्राचारप्रकल्प इस प्रकार से वर्णन किया है । यथा--
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