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श्रमण-सूत्र
पापश्रुत के २६ भेद
(१) भौम = भूमिकंध आदि का फल बताने वाला शास्त्र ।
(२) उत्पात = रुधिर वृष्टि, दिशाओं का लाल होना इत्यादि का शुभाशुभ फल बताने वाला निमित्त शास्त्र ।
( ३ ) स्वप्न-शास्त्र ।
( ४ ) अन्तरिक्ष = आकाश में होने वाले ग्रहबेध ग्रादि का वर्णन करने वाला शास्त्र ।
(५ . अंगशास्त्र = शरीर के स्पन्दन श्रादि का फल कहने वाला शास्त्र ।
(६) स्वर शास्त्र ।
( ७ ) व्यञ्जन शास्त्र = तिल, मष ग्रादि का वर्णन करने वाला शास्त्र ।
(८) लक्षण शास्त्र - स्त्री पुरुषों के लवणों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र ।
ये आठों ही सूत्र, वृत्ति, और वार्तिक के भेद से चौबीस शास्त्र हो जाते हैं ।
(२५) विकथानुयोग - अर्थ और काम के उपायों को बताने वाले शास्त्र, जैसे वाल्यायनकृत काम सूत्र आदि ।
(२६) विद्यानुयोग = रोहिणी आदि विद्यायों की सिद्धि के उपाय बताने वाले शास्त्र ।
( २७ ) मन्त्रानुयोग = मन्त्र आदि के द्वारा कार्यसिद्धि बताने वाले शास्त्र ।
(२८) योगानु योग : वशीकरण आदि योग बताने वाले शास्त्र ।
(२६) अन्यतीथिकानुयोग = अन्यतीर्थिकों द्वारा प्रवर्तित एवं अभिमत हिंसा प्रधान श्राचार-शास्त्र ।
[ समवायांग ]
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