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श्रमगा-सूत्र
चतुर्थ ब्रह्मचर्य महाव्रत की ५ भावना
(१) अतीव स्निग्ध पौष्टिक आहार नहीं करना ( २ ) पूर्व भुक्त भोगों का स्मरण नहीं करना अथवा शरीर की विभूषा नहीं करना ( ३ ) स्त्रियों के अंग उमांग नहीं देखना (४) स्त्री, पशु और नपुसक वाले स्थान में नहीं ठहरना (५) स्त्री विषयक चर्चा नहीं करना । पंचम अपरिग्रह महाव्रत की ५ भावना
(१-५ ) पाँचों इन्द्रियों के विषय शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श के इन्द्रियगोचर होने पर मनोज्ञ पर रागभाव तथा अमनोज्ञ पर द्वेषभाव न लाकर उदासीन भाव रखना। [ समवायांग ] ___ महाव्रतों की भावनाओं पर विशेष लक्ष्य देने की आवश्यकता है । महाव्रतों की रक्षा उक्त भावनाओं के बिना हो ही नहीं सकती। यदि सयम यात्रा में कहीं भावनाओं के प्रति उपेक्षा भाव रक्खा हो तो अतिचार होता है, तदर्थं यहाँ प्रतिक्रमण का उल्लेख है । दशाश्रत आदि सूत्रत्रयी के २६ उद्देशनकाल
दशाश्रुत स्कन्ध सूत्र के दश उद्देश, बृहत्कल्प के छह उद्देश, श्रोर व्यवहार सूत्र के दश उद्देश--इस प्रकार सूत्रत्रयी के छब्बीस उद्देश होते हैं । जिस श्रु तस्कन्ध या अध्ययन के जितने उद्देश होते हैं उतने ही वहाँ उद्देशनकाल-अर्थात् श्रु तोपचार रूप उशावसर होते हैं । उक्त सूत्रत्रवी में साधुजीवन सम्बन्धी प्राचार की चर्चा है। अतः तदनुसार आचरण न करना अतिचार होता है। सत्ताईस अनगार के गुण
(१-५ ) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पाँच महाव्रतों का सम्यक् पालन करना । (६) रात्रि भोजन का त्याग करना। (७-११ ) पाँचों इन्द्रियों को वश में रखना ( १२ ) भावसत्य = अन्तःकरण की शुद्धि (१३) करणसत्य = वस्त्र पात्र आदि की भली भाँति प्रतिलेखना करना ( १४) क्षमा (१५) विरागता= लोभ निग्रह
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