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श्रमण-सूत्र
मिष्टान्न आदि खाना और मस्त रहना, यही इनके जीवन का श्रादर्श रहता है। स्वादु भोजन के फेर में ये लोग धामिक मर्यादा का तो क्या खयाल रक्खेंगे ?; अपने स्वास्थ्य की भी चिन्ता नहीं करते और . अंट-सट खा-पीकर एक दिन अपने अमूल्य मानव-जीवन को मिट्टी में -मिला देते हैं । इनका अादर्श है.---'भोजन के लिए जीवन'; जबकि होना चाहिए-'जीवन के लिए भोजन ।'
दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं, जो स्वादु भोजन के फेर में तो नहीं पड़ते । परन्तु पुष्टिकर एवं शक्तिप्रद भोजन का मोह वे भी नहीं छोड़ सके हैं। शरीर को मजबूत बनाएँ, बलिष्ठ पहलवान बने, और मनचाही ऐश करें, यही आदर्श इन लोगों के जीवन का है। इसके श्रागे का कोई भी उज्ज्वल चित्र इनकी आँखों के समक्ष नहीं रहता। धर्म की मर्यादा से इनका भी कोई सम्बन्ध नहीं होता। भोजन पुष्टिकर होना चाहिए, फिर भले वह कैसा ही हो और किसी भी तरह मिला हो ।
तीसरी श्रेणी श्रात्मतत्व के पारखी साधक पुरुषों की है। ये लोग 'जीवन के लिए भोजन' का आदर्श रख कर कार्यक्षेत्र में उतरते हैं । स्वादु भोजन तथा पुष्टिकर भोजन से इन्हें कुछ मतलब नहीं; इन्हें तो शरीर यात्रा के लिए जैसा भी रूखा-सूखा पार जितना भी भोजन मिले, वही पर्याप्त है । साधक को अपने आहार पर पूरा-पूरा काबू रखना चाहिए। वह जो कुछ भी खाए, वह केवल औषधि के रूप में शरीर रक्षा के लिए ही खाए, स्वाद के लिए कदापि नहीं।
__ साधक के भोजन का आदर्श है--हित, मित, पथ्य । भोजन ऐसा होना चाहिए, जो अल्म हो, स्वास्थ्यवर्धक हो और धर्म की दृष्टि से भी उपयुक्त हो । मांस, मद्य अथवा अन्य धर्म-विरुद्ध अभक्ष्य भोजन, वह कदापि नहीं करता। एतदर्थं वह जीवन से हाथ धोने के लिए तैयार रहता है, किन्तु अपवित्र मादक पदार्थों का सेवन किसी भी प्रकार नहीं कर सकता। भोजन का मन के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है। मनुष्य जैसा अन्न खाता है, मन वैसा ही बन जाता है । सात्विक भोजन करने वाले क
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