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शेष-सूत्र
३५५
शब्दार्थ भगवं=हे भगवन् !
(गुरुजनों की ओर से प्राज्ञा मिल इच्छाकारेण = इच्छापूर्वक जाने पर, या अपने संकल्प से ही संदिसह = प्राज्ञा दीजिए
प्राज्ञा स्वीकार करके अब साधक इरियावहियं = ऐापथिकी (प्राने
कहता है ] जाने की) क्रिया का इच्छं - आपकी प्राज्ञा शिरोधार्य है पडिकमामि = प्रतिक्रमण करूं
भावार्थ भगवन् ! इच्छा के अनुसार आज्ञा दीजिए कि मैं ऐपिथिकी = गमन मार्ग में अथवा स्वीकृत धर्माचरण में होने वाली पापक्रिया का प्रतिक्रमण करू ?....
उत्तरीकरण-सूत्र तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्त-करणे, विसोही-करणेणं, विसल्ली-करणोणं पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए, ठामि काउस्सग्गं ॥१॥ १-शेष पाठ का शब्दार्थ और भावार्थ श्रमण-सूत्र के ५४ व प पर देखिए।
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