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श्रमण-सूत्र
( १४ ) बत्तीस अस्वाध्याय
बत्तीस स्वाध्यायों का वर्णन स्थानाङ्ग सूत्र में है । वह इस प्रकार है -- दश ग्राकाश सम्बन्धी, दश श्रदारिक सम्बन्धी, चार महाप्रतिपदा, चार महाप्रतिपदाओं के पूर्व की पूर्णिमाएँ, और चार सन्ध्याएँ । अन्य ग्रन्थों में कुछ मत भेद भी हैं । परन्तु यहाँ स्थानाङ्ग सूत्र के अनुसार ही लिखा जा रहा है ।
( १ ) उल्कापात -- आकाश से रेखा वाले तेजःपुञ्ज का गिरना, अथवा पीछे से रेखा एवं प्रकाश वाले तारे का टूटना, उल्कापात कहलाता है । उल्कापात होने पर एक प्रहर तक सूत्र की अत्वाध्याय रहती है ।
( २ ) दिग्दाह - किसी एक दिशा- विशेष में मानों बड़ा नगर जल रहा हो, इस प्रकार ऊपर की ओर प्रकाश दिखाई देना और नीचे अन्धकार मालूम होना, दिग्दाह है | दिग्दाह के होने पर एक प्रहर तक स्वाध्याय रहती है ।
(३) गर्जित - बादल गर्जने पर दो प्रहर तक शास्त्र की स्वाध्याय नहीं करनी चाहिए |
(४) विद्युत - बिजली चमकने पर एक प्रहर तक शास्त्र की स्वाध्याय करने का निषेध है ।
आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अर्थात् वर्षा ऋतु में गर्जित और विद्युत की स्वाध्याय नहीं होती । क्योंकि वर्षा काल में ये प्रकृतिसिद्धस्वाभाविक होते हैं ।
( ५ ) निर्घात - विना बादल वाले आकाश में व्यन्तरादिकृत गर्जना की प्रचण्ड ध्वनि को निर्घात कहते हैं । निर्घात होने पर एक होरात्रि तक स्वाध्याय रखना चाहिए |
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(६) यूपक शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीय और तृतीया को सुन्ध्या की प्रभा और चन्द्र की प्रभा का मिल जाना, यूपक है । इन
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