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बोल संग्रह
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न हो तो उस सभा में गुरुदेव – कथित धर्मकथा का ही अन्य व्याख्यान करना और कहना कि 'इसके ये भाव और होते हैं ।'
( ३० ) गुरुदेव के शय्या संस्तारक को पैर से छूकर क्षमा माँगे विना ही चले जाना ।
(३१) गुरुदेव के शय्या - संस्तारक पर खड़े होना, बैठना, और
सोना ।
(३२) गुरुदेव के श्रासन से ऊँचे आसन पर खड़े होना, बैठना और
सोना ।
(३३) गुरुदेव के आसन के बराबर ग्रासन पर खड़े होना, बैठना और सोना ।
ये
शातनाएँ हरिभद्रीय आवश्यक के प्रतिक्रमणाध्ययन के अनुसार दी हैं । समवायांग और दशाश्रु तस्कन्ध सूत्र में भी कुछ क्रम भंग, के सिवा ये ही ग्राशातनाएँ हैं ।
( १७ ) गोचरी के ४७ दोष गवेषणा के १६ उद्गम दोष
हाक मुद्देसिय पूर्वकम्मे य मीसजाए य । वरण पाहुडियाए पाओयर कीय पामिच्चे ॥ १ ॥ परियट्टिए अभिहडे उभिन्न मालोहडे इयः । भोयर य सोलसमे ॥ २ ॥
छज्जे अणिसि ( १ ) आधाकर्म - साधु का उद्देश्य रखकर बनाना । ( २ ) औद्देशिक -सामान्य याचकों का उद्देश्य रखकर बनाना । (३) पूतिकर्म - शुद्ध आहार को श्रधाकर्मादि से मिश्रित करना । ( ४ ) मिश्र जात - अपने और साधु के लिए एक साथ बनाना । (५) स्थापन - साधु के लिए दुग्ध आदि अलग रख देना ।
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