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बोल-संग्रह
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(३१) टड्डर -- ऊँचे स्वर से अभद्र रूप में वन्दना सूत्र का
उच्चारण करना ।
(३२) चुड्ली - अर्द्धदग्ध अर्थात् अधजले काठ की तरह रजोहरण को सिरे से पकड़ कर उसे घुमाते हुए वन्दन करना ।
[ प्रवचन सारोद्धार, वन्दनाद्वार ]
( १६ ) तेतीस शातनाएँ
( १ ) मार्ग में रत्नाधिक ( दीक्षा में बड़े ) से आगे चलना । ( २ ) मार्ग में रत्नाधिक के बराबर चलना ।
( ३ ) मार्ग में रत्नाधिक के पीछे ड़कर चलना |
( ४ - ६ ) रत्नाधिक के ग्रागे बराबर में तथा पीछे अड़ कर खड़े होना ।
( ७-९ ) रत्नाधिक के आगे, बराबर तथा पीछे अड़कर बैठना । ( १० ) रत्नाधिक और शिष्य विचार-भूमि. ( जंगल में ) गए हों वहाँ रत्नाधिक से पूर्व श्राचमन - शौच करना ।
(११) बाहर से उपाश्रय में लौटने पर रत्नाधिक से पहले पथ की आलोचना करना
(१२) रात्रि में रत्नाधिक की ओर से 'कौन जागता है ?' पूछने जागते हुए भी उत्तर न देना ।
पर
(१३) जिस व्यक्ति से रत्नाधिक को पहले बात-चीत करनी चाहिए, उससे पहले स्वयं ही बात-चीत करना ।
(१४) आहार आदि की आलोचना प्रथम दूसरे साधुओं के श्रागे करने के बाद रत्नाधिक के आगे करना ।
(१५) आहार आदि प्रथम दूसरे साधुत्रों को दिखला कर बाद में रत्नाधिक को दिखलाना ।
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