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बोल-संग्रह
४३५ उपर्युक्त ४७ दोषों का वर्णन पिण्डनियुक्ति, प्रवचनसार, आवश्यक श्रादि में आता है। प्रत्येक टीकाकार कुछ अर्थ भेद की भी सूचना देते हैं । यहाँ सामान्यतया प्रचलित अर्थों का ही उल्लेख किया गया है।
( १७ )
चरण-सप्तति वय समणधम्म,
संजम वयावचं च बंभगुत्तीयो। नाणाइतियं तवं, कोह-निग्गहाई चरणमेयं ॥
—ोधनियुक्ति-भाष्य पाँच महाव्रत, क्षमा आदि दश श्रमण-धर्म, सतरह प्रकार का संथम, दश वैया वृत्य, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्ति, ज्ञान दर्शन-चारित्ररूप तीन रत्न, बारह प्रकार का तप, चार कपायों का निग्रह---यह सत्तर प्रकार का चरण है।
करण-सप्तति पिंड विसोही समिई,
भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु ।।
-श्रोधनियुक्ति भाष्य श्रशन श्रादि चार प्रकार की पिण्ड विशुद्धि, पाँच प्रकार की समिति, बारह प्रकार की भावना, बारह प्रकार की भिक्षु-प्रतिमा, पाँच प्रकार
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