________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
शेष-सूत्र
शब्दार्थ
पुरिस हमें में
गइ = गति-प्रायरूप वरगंधहत्थीणं- श्रेष्ठ यमबहस्ती पहावंसप्रतिधा-साधाररूप लोगुत्तवाणं = लोक में उत्तम. अप्पडिहय प्रतिहत किसी भी लोगनाहाणं लोक के नाथ रुकावट में नवाने वाले, ऐसे लोगहिया - लोक के हितकारी वर नाराईसाधराणं = श्रेष्ठ ज्ञान लोगपईवाणं = लोक में दीपक
दर्शन के धारक लोगपज्जोयगराणं = लोक में ज्ञान वियट्ट छउमाणं = छद्म-प्रमाद से का प्रकाश करने वाले
रहित अभय दया अभयदान देने वाले जिणाणं = राम-दुष के जीतने चक्खुदयाणं% ज्ञान नेत्र के देने
काले वाले जावयाणं-दूसरों को जिताने वाले मग्गदयाणं = मोक्षमार्ग के दाता विन्नाणं = स्वयं संसार सागर से सरणदयाणं = शरण के दाता जीवदयाणं-संयमजीवन के दाता तारयाणं = दूसरे को तारने वाले बोहित्यासावरकरूप अधिक बुद्धा = स्वयं बोध को प्राश हुए
के दाता. मेहसाणं - इसरों को बोध देवे. धम्मदयाणं = धर्म के दाता
वाले. धम्मदेसयाणं = धर्म के उपदेशक मुत्ताणं = स्वयं कर्मों से मुक्त अपमनायगावं-धर्म के नेता मोयगाणं = दूसरों को मुक्त कराने धाम सारहीसं-धर्मस्म के सारथी
वाले धम्मवर धर्म के सबसे श्रेष्ठ सव्वन्नूर सस सरंत-ससे पति के प्रख- सम्बदरिसीसं = सबद तथा
करने वाले सिवं-शिव, कल्याण रूप चक्कवट्टीणं = (धर्म) चक्रवर्ती प्रयलं : अचल, स्थिर स्वरूप.. दीव= (भवसागर में) द्वीपरूप अरुयं = अरुज, लेग से रहित ताण - रक्षारूप
अणंतं = अनंत, अन्त से रहित अक्खयं = अक्षम, जयः से रहित
For Private And Personal