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बोल संग्रह
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(६) पृच्छना - किसी कार्य में प्रवृत्ति करनी हो तो पहले गुरुदेव से पूछना चाहिए कि - 'क्या मैं यह कार्य कर लूँ ?' यह पृच्छना है ।
(७) प्रतिप्रच्छना - गुरुदेव ने पहले जिस काम का निषेध कर दिया हो, यदि आवश्यकतावश वही कार्य करना हो तो गुरुदेव से पुनः पूछना चाहिए कि "भगवन् ! आपने पहले इस कार्य का निषेध कर दिया था, परन्तु यह श्रतीव श्रावश्यक कार्य है; अतः आप श्राज्ञा दें तो यह कार्य कर लूँ ?” इस प्रकार पुनः पूछना, प्रतिपृच्छन है । (८) छन्दना - स्वयं लाए हुए आहार के लिए साधुओं को श्रामंत्रण देना कि- 'यह श्राहार लाया हूँ, यदि श्राप भी इसमें से कुछ ग्रहण करें तो मैं धन्य होऊँगा ।"
( ६ ) निमंत्रणा - श्राहार लाने के लिए जाते हुए दूसरे साधुओं को निमंत्रण देना, अथवा यह पूछना कि क्या आपके लिए भी आहार लेता आऊँ ?
(१०) उपसंपदा -ज्ञान आदि प्राप्त करने के लिए अपना गच्छ छोड़कर किसी विशेष ज्ञान वाले गुरु का श्राश्रय लेना, उपसंपदा है । गच्छ मोह में पड़े रह कर ज्ञानादि उपार्जन करने के लिए दूसरे योग्य गच्छ का ग्राश्रय न लेना, उचित नहीं है ।
( भगवती, शत० २५, ३७ )
( ११ )
साधु के योग्य चौदह प्रकार का दान
( १ ) अशन - खाए जाने वाले पदार्थ रोटी आदि । ( २ ) पान - पीने योग्य पदार्थ, जल आदि । (३) खादिम -- मिष्टान्न, मेवा श्रादि सुस्वादु पदार्थ | (४) स्वादिम - मुख की स्वच्छता के लिए, लौंग सुपारी आदि ।
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