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श्रमण-सूत्र
(५) वस्त्र पहनने योग्य वस्त्र । (६) पात्र-काठ, मिट्टी और तुम्बे के बने हुए पात्र । (७) कम्बल-ऊन श्रादि का बना हुआ कम्बल । (८) पादप्रोञ्छन-रजोहरण, श्रोषा । (१) पीठ-बैठने योग्य चौकी आदि । (१०) फलक-सोने योग्य पट्टा आदि । (११) शय्या-ठहरने के लिए मकान आदि । (१२) संथारा-बिठाने के लिए घास आदि । (१३) औषध-एक ही वस्तु से बनी हुई औषधि । (१४) भेषज-अनेक चीजों के मिश्रण से बनी हुई औषधि ।
ऊपर जो चौदह प्रकार के पदार्थ बताए गए हैं, इन में प्रथम के 'अाठ पदार्थ तो दानदाता से एक बार लेने के बाद फिर वापस नहीं
लौटाए जाते । शेष छह पदार्थ ऐसे हैं, जिन्हें साधु अपने काम में लाकर वापस लौटा भी देते हैं ।
[श्रावश्यक] (१२)
कायोत्सर्ग के उन्नीस दोष घोडग' लया२ य खंभे कुड्ड3 माले य सबरि बहु नियले । लंबुत्तर' घण उड्डी' संजय १ खलिणे२ य वायस कवि? १४ ॥ सीसोकंपिय"५ मूई१६ अंगुलि भमुहा० य वारुणी'८ पेहा । एए काउ सग्गे वंति दोसा इगुणवीसं ॥
(१) घोटक दोष-घोड़े की तरह एक पैर को मोड़कर खड़े होना।
(२) लता दोष-पवन-प्रकंपित लता की तरह काँपना । (३) स्तंभकुड्य दोष-खंभे या दीवाल का सहारा लेना।
(४) माल दोष-माल अर्थात् ऊपर की ओर किसी के सहारे मस्तक लगा कर खड़े होना ।
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