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श्रमण सूत्र
(४) अतिजागरित-अधिक जागने से । (५) उच्चारनिरोध-बड़ी नीति की बाधा रोकने से । (६) प्रस्रवणनिरोध- लघुनीति ( पेशाब) रोकने से । (७) अतिगमन-मार्ग में अधिक चलने से । (८) प्रतिकूलभोजन-प्रकृति के प्रतिकूल भोजन करने से । (१) इन्द्रियार्थविकोपन-विषयासक्ति अधिक रखने से ।
समाचारी के दश प्रकार (१) इच्छाकार-यदि आपकी इच्छा हो तो मैं अपना अमुक कार्य करूँ, अथवा श्राप चाहें तो मैं आप का यह कार्य करूँ ? इस प्रकार पूछने को इच्छाकार कहते हैं। एक साधु दूसरे से किसी कार्य के लिए प्रार्थना करे अथवा दूसरा साधु स्वयं उस कार्य को करे तो उसमें इच्छाकार कहना आवश्यक है । इस से किसी भी कार्य में किसी भी प्रकार का बलाभियोग नहीं रहता।
(२) मिथ्याकार-संयम का पालन करते हुए कोई विपरीत अाचरण हो गया हो तो उस पाप के लिए पश्चात्ताप करता हुआ साधु 'मिच्छामि दुक्कडं' कहे, यह मिथ्याकार है।
(३) तथाकार-गुरुदेव की ओर से किसी प्रकार की आज्ञा मिलने पर अथवा उपदेश देने पर तहत्ति (जैसा आप कहते हैं वही ठीक है ) कहना, तथाकार है ।
(४) श्रावश्यिकी-श्रावश्यक कार्य के लिए उपाश्रय से बाहर जाते समय साधु को 'प्रावस्सिया' कहना चाहिए-अर्थात् मैं आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाता हूँ।
(५) नैषेधिकी-बाहर से वापिस श्राकर उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहिया' कहना चाहिए। इसका अर्थ है-अब मुझे बाहर रहने का कोई काम नहीं रहा है ।
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