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बोल - संग्रह
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(५) शबरी दोष - नग्न भिल्लनी के समान दोनों हाथ गुहा
स्थान पर रखकर खड़े होना ।
(६) वधू दोष -कुल-वधू की तरह मस्तक झुकाकर खड़े होना । (७) निगड दोष- बेड़ी पहने हुए पुरुष की तरह दोनों पैर फैला कर अथवा मिलाकर खड़े होना ।
(८) लम्बोत्तर दोष -
अव्यक्त शब्द करना ।
(१७) अंगुलिका
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और नीचे घुटने तक लम्बा करके खड़े होना ।
( ६ ) स्तन दोष -मच्छर आदि के भय से अथवा अज्ञानताघश छाती ढक कर कायोत्सर्ग करना ।
(१०) उद्धिका दोष --- एड़ी मिला कर और पंजों को फैलाकर खड़े रहना, अथवा अँगूठे मिलाकर और एड़ी फैलाकर खड़े रहना, उर्दिका दोष है |
(११) संयती दोष -- साध्वी की तरह कपड़े से सारा शरीर ढँक कर कायोत्सर्ग करना ।
(१२) खलीन दोष- लगाम की तरह रजोहरण को आगे रख कर खड़े होना । अथवा लगाम से पीड़ित अश्व के समान मस्तक को कभी ऊपर कभी नीचे हिलाना, खलीन दोष है ।
(१३) वायस दोष - कौवे की तरह चंचल चित्त होकर इधरउधर आँखें घुमाना अथवा दिशाओं की ओर देखना ।
(१४) कपित्थ दोष -- पट्पदिका ( जूँ ) के भय से चोलपट्टे को कपित्थ की तरह गोलाकार बना कर जंघात्रों के बीच दबाकर खड़े होना । अथवा मुट्ठी बाँध कर खड़े रहना, कपित्थ दोष है ।
(१५) शीर्षोत्कम्पित दोष-भूत लगे हुए व्यक्ति की तरह सिर धुनते हुए खड़े रहना ।
(१६) मूक दोष- मूक अर्थात् गूँगे आदमी की तरह 'हूँ हूँ' आदि
विधि से चोलपट्टे को नाभि के ऊपर
दोष - श्रालापकों को अर्थात् पाढ की -
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