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परमेष्ठि-वन्दन अरिहंत-वन्दन
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नमोऽत्थु अरिहंताणं, भगवंताणं, सव्वजगजीववच्छलाएं, सव्वजगमंगलारां, मोक्खमग्गदेसगाणं, अप्प हियवरनाणदंसणधराणं जियरागदोसमोहाणं, जिखाणं ।
राग-द्वेष, महामल्ल घोर घनघातिकर्म, नष्ट कर पूर्ण सर्वज्ञ पद पाया है । शान्ति का सुराज्य समोसरण में कैसा सौम्य, सिंहनी ने दुग्ध मृगशिशु को पिलाया है ॥ अज्ञानान्धकार-मन विश्व को दयार्द्र होके, सत्य-धर्म- ज्योति का प्रकाश दिखलाया है । 'अमर' सभक्तिभाव बार बार बन्दनार्थ, अरिहंत चरणों में मस्तक झुकाया है ॥
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सिद्ध-वन्दन
नमोऽत्थुणं सिद्धाणं, बुद्धाणं, संसारसागरपार गयाणं, जन्मजरामरणचक्कविप्प मुक्का, कम्ममलरहियाणं, अव्वाबाद
सुहमुवगयाणं, सिद्धिट्ठाणं संपत्ताणं ।
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