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परमेष्ठि-वन्दन मन्द-बुद्धि शिष्यों को भी विद्याका अभ्यास करा,
दिग्गज सिद्धान्तवादी पंडित बनाया है। पाखंडीजनों का गर्व खर्व कर जगत् में,
अनेकान्तता का जय-केतु फहराया है। शंका-समाधान-द्वारा भविकों को बोध दे के,
देश - परदेश ज्ञान - भानु चमकाया है। 'अमर' सभक्तिभाव बार-बार वन्दनार्थ, .. उपाध्याय - चरणों में मस्तक मुकाया है।
साधु-वन्दन नमोऽत्धुणं सब्बसाहूणं, अक्खलियसीलाणं, सव्वालंबणविप्पमुक्काणं, समसत्तुमित्तपक्खाणं, कलिमलमुक्काणं, उझियविसयकसायाणं, भावियजिणवयणमणाणं, तेल्लोक्कसुहावहाणं, पंचमहञ्चयधराएं। शत्र और मित्र तथा मान और अपमान,
सुख और दुःख द्वैत-चिन्तन हटाया है। मैत्री और करुणा समान सब प्राणियों पै,।
क्रोधादि-कषाय-दावानल भी बुझाया है । ज्ञान एवं क्रिया के समान दृढ़ उपासक,
भीषण समर कर्म-चमू से मचाया है । 'अमर' सभक्तिभाव बार-बार वन्दनार्थ, त्यागी-मुनि-चरणों में मस्तक झुकाया है।
धर्मगुरु-वन्दन नमोऽत्थुणं धम्मायरियाणं, धम्मदेसगाणं, संसारसागरतारगाणं, असंकिलिटायारचरित्तापं, सव्वसत्तागुग्गहपरायणाणं, उपग्गहकुस गणं ।
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