________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
श्रमण-सूत्र
(२)
अप्रमाद-प्रतिलेखना (१) अनर्तित-प्रतिलेखना करते हुए शरीर और वस्त्र आदि को इधर-उधर नचाना न चाहिए ।
(२) अवलित-प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र कहीं से मुड़ा हुआ न होना चाहिए । प्रतिलेखन करने वाले को भी अपने शरीर को विना मोड़े सीधे बैठना चाहिए । अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र और शरीर को चंचल न रखना चाहिए ।
(३) अननुबन्धी-वस्त्र को अयतना से झड़काना नहीं चाहिए ।
(४) अमोसली-धान्यादि कूटते समय ऊपर, नीचे और तिरछा लगने वाले मूसल की तरह प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे या तिरछा दीवार मादि से न लगाना चाहिए ।
(५) षट् पुरिमनवस्फोटका-(छः पुरिमा नव खोडा)
प्रतिलेखना में छः पुरिम और नव खोड करने चाहिएँ । वस्त्र के दोनों हिस्सों को तीन-तीन बार खंखेरना, छः पुरिम हैं | तथा वस्त्र को तीन-तीन बार पूँज कर उसका तीन बार शोधन करना, नव खोड हैं ।
(६) पाणि-प्राण विशोधन-वस्त्र अादि पर कोई जीव देखने में श्राए तो उसका यतनापूर्वक अपने हाथ से शोधन करना चाहिए ।
[ठाणांग सूत्र (३)
प्रमाद-प्रतिलेखना (१) श्रारभटा-विपरीत रीति से अथवा शीघ्रता से प्रतिलेखना करना । अथवा एक वस्त्र की प्रतिलेखना बीच में अधूरी छोड़कर दूसरे वस्त्र की प्रतिलेखना करने लग जाना, वह अोरभटा प्रतिलेखना है।
For Private And Personal