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बोल-संग्रह
४११ (२) सम्मा -जिस प्रतिलेखना में वस्त्र के कोने मुड़े ही रहे अर्थात् उसकी सलवट न निकाली जाय, वह सम्मर्दा प्रतिलेखना है । अथवा प्रतिलेखना के उपकरणों पर बैठकर प्रतिलेखना करना, सम्मर्दा प्रतिलेखना है।
(३) मोसली-जैसे धान्य कूटते समय मूसल ऊपर, नीचे और तिरछे लगता है, उसी प्रकार प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे अथवा तिरछा लगाना, मोसली प्रतिलेखना है ।
(४) प्रस्फोटना-जिस प्रकार धूल से भरा हुअा वस्त्र जोर से झड़काया जाता है, उसी प्रकार प्रतिलेखना के वस्त्र को जोर से झड़काना, प्रस्फोटना प्रतिलेखना है।
(५) विक्षिप्ता-प्रतिलेखना किए हुए वस्त्रों को विना प्रतिलेखना किए हुए वस्त्रों में मिला देना, विक्षिप्ता प्रतिलेखना है । अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र के पल्ले आदि को इधर-उधर फेंकते रहना विक्षिप्ता प्रतिलेखना है।
(६) वेदिका-प्रतिलेखना करते समय घुटनों के ऊपर, नीचे या पसवाड़े हाथ खना, अथवा दोनों घुटनों या एक घुटने को भुजात्रों के बीच रखना, वेदिका प्रतिलेखना है । [ ठाणांग सूत्र]
आहार करने के छह कारण (१) वेदना-क्षुधा वेदना की शान्ति के लिए । (२) वैयावृत्य-सेवा करने के लिए। (३) ईर्यापथ-मार्ग में गमनागमन आदि की शुद्ध प्रवृत्ति के
लिए। (४) संयम-संयम की रक्षा के लिए। (५)प्राणप्रत्ययार्थ प्राणों की रक्षा के लिए। (६) धर्मचिन्ता-शास्त्राध्ययन आदि धर्म चिन्तन के लिए ।
[उत्तराध्ययन २६ वाँ अध्ययन ]
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