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अतिचार-अालोचना
३६६ सुनते ही कटु-वाक्य अग्नि-ज्यों भभक उठा,
निन्दकों के प्रति घृणा-द्वेष-भाव लाया हो । रोगी, दीन, दुःखी छोटे-बड़े सभी प्राणियों से,
प्रेम-भरा बन्धुता का भाव न रखाया हो । दैनिक 'अमर' सर्व पाप-दोष मिथ्या होवें,
आद्य महाव्रत में जो दूषण लगाया हो ।
सत्य-महाव्रत हास्य-वश लम्बी-चौड़ी गढ़ के गढन्त भूठी,
औंधा-सीधा कोई भद्र प्राणी भरमाया हो। राज की, समाज की या प्राणों की विभीषिका से,
भूठ बोल जानते भी सत्य को छुपाया हो । द्वेष-वश मिथ्या दोष लगा बदनाम किया,
सत्य भी अनर्थकारी भूल प्रगटाया. हो । दैनिक 'अमर' सर्व पाप - दोष मिथ्या होवे। सत्य महाव्रत में जो दूषण लगाया हो ।
अचौर्य-महाव्रत अशन, वसन अथ अन्य उपयोगी वस्तु,
मालिक की आज्ञा बिना तृण भी उठाया हो। मानव-समाज की हा ! छाती पै का भार रहा,
विश्व-हित-हेतु स्वकर्तव्य न बजाया हो। वृद्धों की, तपस्वियों की तथा नवदीक्षितों की,
रोगियों की सेवा से हरामी जी चुराया हो। दैनिक 'अमर' सर्व पाप-दोष मिथ्या होवें, ...
___ दत्त-महाव्रत में जो दूषण लगाया हो।
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