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: ६ :
गोचरचर्या - सूत्र
पडिक मामि
गोयरचरियार, भिक्खायरियाए
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उग्घाड-कवाड-उग्घाडणार, साणा वच्छा-दारासंघट्टणाए, मंडी - पाहुडियाए, बलि- पाहुडियाए, ठवणापाहुडियाए, - संकिए, 'सहसागारे, असणार,
पाणभोयणाए, बीयभोयणार, हरियभोयणाए, पच्छाकम्मिया, पुरेकम्मियाए,
हिडा, दग-संस-हडाए, रय-संसट्ट-हडाए, पारिसाडगियाए, पारिट्ठावणियाए, हासण- भिक्खाए जं उग्गमेणं, उपायणेसणाए - अपरिसुद्ध, परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिट्ठवियं,
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं !
१ – 'सहसागारिए' ऐसा भी कुछ प्रतियों में पाठ है । परन्तु जिनदास महत्तर और हरिभद्र आदि प्राचीन श्राचार्यों ने 'सहसागारे' पाठ का ही उल्लेख किया है ।
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