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भयादि-सूत्र
१७१
दश श्रमण धर्म
(१) शान्ति - क्रोध न करना ।
(२) मार्दव - मृदु भाव रखना, जाति कुल आदि का अहंकार न करना।
(३) श्राव = ऋजुभाव-सरलता रखना, माया न करना। (४) मुकि = निर्लोभता रखना, लोभ न करना । (५) तप=अनशन श्रादि बारह प्रकार का तपश्चरण करना। (६) संयम - हिंसा आदि श्राश्रवों का निरोध करना । (७) सत्य - सत्य भाषण करना, झूट न बोलना ।
(८) शौच =सयम में दूपण न लगाना, संयम के प्रति निरुपले पतापवित्रता रखना।
(६) अकिंचन्य - परिग्रह न रखना। (१०) ब्रह्मचर्य - ब्रह्मचर्य का पालन करना ।
यह दशविध श्रमण धर्म, श्राचार्य हरिभद्र के द्वारा उद्धृत चीन संग्रहणी गाथा के अनुसार हैखंती य मद्दवज्जव,
मुत्ती तव संजमे य बोद्धव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च,
बंभं च जइ - धम्मो ॥ समवायांग सूत्र का उल्लेख इस प्रकार है-खंती, मुत्ती, अजवे, नहवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे । स्थानांग सूत्र में भी ऐसा ही मूल पाट है ।
प्राचार्य हरिभद्र ने 'अन्ये त्वेव वदन्ति' कहकर दशविध श्रमण-धर्म के लिए एक और प्राचीन गाथा मतान्तर के रूप में उद्धृत की है
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