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संस्तार पौरुषी-सूत्र अणुजाणह संथारं,
बाहुवहाणेण वामपासेणं । कुक्कुडि-पायपसारण
अतरंत पमज्जए भूमि ॥ २ ॥ संकोइय संडासा,
उबट्टते अ काय-पडिलेहा । दवाई-उपभोगं,
ऊसासनिरंभणालोए ॥ ३॥
भावार्थ [संथारा करने की विधि ] मुझको संथारा की प्राज्ञा दीजिए। [संथारा की आज्ञा देते हुए गुरु उसकी विधि का उपदेश देते हैं ] मुनि बाई भुजा को तकिया बनाकर बाई करवट से सोवे । और मुर्गी की तरह ऊँचे पाँव करके सोने में यदि असमर्थ हो तो भूमि का प्रमार्जन कर उस पर पाँव रक्खे । ___ दोनों घुटनों को सिकोड़ कर सोवे । करवट बदलते समय शरीर की प्रतिलेखना करे । जागने के लिए ' द्रव्यादि के द्वारा आत्मा का
१-मैं वस्ततुः कौन हूँ और कैसा हूँ ? इस प्रश्न का चिन्तन करना द्रव्य चिन्तन है । तत्त्वतः मेरा क्षेत्र कौनसा है ? यह विचार करना क्षेत्रचिन्तन है । मैं प्रमाद रूप रात्रि में सोया पड़ा हूँ अथवा अप्रमत्त भावरूप दिन में जागृत हूँ ? यह चिन्तन कालचिन्तन है । मुझे इस समय लघुशंका आदि द्रव्य बाधा और रागद्वेष आदि भाववाधा कितनी है ? यह विचार करना भावचिन्तन है।
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