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उपसंहार-सूत्र एवमहं आलोइस,
_निंदिय गरहिअ दुगुछिउ सम्म । तिविहण पडिक्कतो, वंदामि जिणे चउब्धीसं ॥
शब्दार्थ एवं इस प्रकार
तिविहेण = तीन प्रकार से अहं = मैं
पडिक्कतो=पाप कर्म से निवृत्त सम्म = अच्छी तरह बालोइअालोचना करके चउव्वीस = चौबीस निंदिय=निन्दा करके
जिणे = जिन देवों को गरहिअ = गर्दा करके
वंदामि= वन्दना करता हूँ दुगुछिउं= जुगुप्सा करके
भावार्थ इस प्रकार मैं सम्यक आलोचना, निन्दा, गर्हा और जुगुप्सा के द्वार। तीन प्रकार से अर्थात् मन, वचन और काय से प्रतिक्रमण कर = पापों से निवृत्त होकर चौबीस तीर्थंकर देवों को वन्दन करता हूँ।
होकर
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