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एकाशनसूत्र
३१६ पाण खाइमं साइमं बोलना चाहिए। यदि दुविहार करना हो त 'दुविहपि श्राहारं असण खाइम' बोलना चाहिए ।
दुविहार एकाशन की परंपरा प्राचीन काल में थी, परन्तु आज के युग में नहीं है।
एकासनमें अाठ आगार होते हैं । चार श्रागार तो पहले श्रा ही चुके हैं, शेष चार श्रागार नये हैं । उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है:
(१) सागारिकाकार-छागम की भाषा में सागारिक गृहस्थ को कहते हैं। गृहस्थ के अा जाने पर उसके सम्मुख भोजन करना निषिद्ध है । अतः 'सागारिक के आने पर साधु को भोजन करना छोड़कर यदि बीच में ही उठकर, एकान्त में जाकर पुनः दूसरी बार भोजन करना पड़े तो व्रत-भङ्ग का दोष नहीं लगता ।
गृहस्थ के लिए सागारिक का अर्थ है--वह लोभी एवं क्रूर व्यक्ति, जिसके अाने पर भोजन करना उचित न हो। अस्तु क्रूर दृष्टि वाले
१ प्राचार्य जिनदास ने अावश्यक चूर्णि में लिखा है कि आगन्तुक गृहस्थ यदि शीघ्र ही चला जाने वाला हो तो कुछ प्रतीक्षा करनी चाहिए, सहसा उठकर नहीं जाना चाहिए | यदि गृहस्थ बैठने वाला है, शीघ्र ही नहीं जाने वाला है, तब अलग एकान्त में जाकर भोजन से निवृत्त हो लेना चाहिए । व्यर्थ में लम्बी प्रतीक्षा करते रहने में स्वाध्याय आदि की हानि होती है । 'सागारियं श्रद्धसमुदिट्टस्स श्रागतं जदि बोलेति पडिच्छति, अह थिरं ताहे सज्झायवाघातो त्ति उदृत्ता अन्नत्थ गंतूणं समुद्दिसति ।'
सर्प और अग्नि आदि का उपद्रव होने पर भी अन्यत्र जाकर भोजन किया जा सकता है । सागारिक शब्द से सर्पादि का भी ग्रहण है।
२ जैन धर्म छुवाछूत के चक्कर में नहीं है । अतएव 'सागारिका कार' का यह अर्थ नहीं है कि कोई अछूत या नीची जाति का व्यक्ति श्रा जाय तो भोजन छोड़कर भाग खड़ा होना चाहिए । साधु के लिए
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