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श्रमशा-सूत्र
आचाम्ल-सूत्र आयंबिलं पच्चक्खामि, अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, उक्खित्तविवेगेणं, गिहि-संसट्टणं, पारिठ्ठावणियामारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियामारणं कोसिरामि।
___ भावार्थ श्राज के दिन आयंबिल अर्थात् प्राचाम्ल तप ग्रहण करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, उत्क्षिप्त विवेक, गृहस्थसंसृष्ट, प. रिठापनिककार, महत्तराकार, सर्व समाधिप्रत्ययाकार-उक्त पाठ प्राकार अर्थात् अपधादों के अतिरिक्त पानाचाम्ल अहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन यह प्राचाम्ल प्रत्याख्यान का सूत्र है। प्राचाम्स व्रत में दिन में एक बर.. रुक्ष, नीरस एवं विकृतिरहित एक आहार ही ग्रहण किया जाता है । दूध, दही, घी, तेल, गुड़, शक्कर, मीठा और पक्वान्न आदि किसी भी प्रकार का स्वादु भोजन, प्राचाम्ल व्रत में ग्रहण नहीं किया जा सकता । अतएव प्राचीन श्राचार ग्रन्थों में चावल, उड़द अथवा सत्तू आदि में से किसी एक के द्वारा ही प्राचाम्ल करने का विधान है।
१-आचार्य हरिभद्र एवं प्रवचनसारोद्वार के वृत्तिकार प्राचार्य सिद्धसेन आदि उपरिनिर्दिष्ट पाठ का ही उल्लेख करते हैं । परन्तु कुछ हस्तलिखित एवं मुद्रित प्रतियों में पच्चक्खामि के आगे चौविहार के रूप में असणं, पाणं, खाइम, साइमं तथा तिविहार के रूप में असणं, खाइम, साइमं पाठ भी लिखा मिलता है ।
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