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अभक्तार्थ-उपवास-सूत्र
ग्रादि का स्वच्छ धोवन ग्राह्य हो । एक गुजराती अर्थकार ने ऐसा लिखा भी है।
(४) बहल-तिल, चावल और जौ श्रादि का चिकना मांड बहल कहलाता है। बहल के स्थान पर कुछ प्राचार्य बहुलेप शब्द का भी प्रयोग करते हैं।
(५) ससिक्थ-पाटा आदि से लिप्त हाथ तथा पात्र आदि का वह धोवन, जिस में सिक्थ अर्थात् अाटा आदि के कण भी हों। इस प्रकार का जल त्रिविधाहार उपवास में लेने से व्रत भंग नहीं होता।
(६) असिक्थ-पाटा आदि से लिप्त हाथ तथा पात्र ग्रादि का वह धोवन, जो छना हुआ हो, फलतः जिस में आटा अादि के कण न हों।
पण्डित सुखलाल जी एक विशेष बात लिखते हैं। उनका कहना है--प्रारंभ से ही चउधिहाहार उपवास करना हो तो 'पारिट्ठावणियागारेणं' बोलना । यदि प्रारंभ में त्रिविधाहार किया हो, परन्तु पानी न लेने के कारण सायंकाल के समय तिविहार से च उबिहाहार उ.वास करना हो तो 'पारिद्वावणियागारेणं' नहीं बोलना चाहिए ।
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(८)
दिवसचरिम-सूत्र दिवसचरिमं पच्चक्खामि, चउविहं पि आहार-असणं, पाणं, खाइम, साइमं,।
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व समाहिवत्तियागारेणं बोसिरामि ।
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