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श्रमण-सूत्र
उद्दविया, ठाणाओ ठाणं संकामिया, जोविया ववरोविया,
तस्स
मिच्छामि दुक्कडं ।
शब्दार्थ
इच्छामि = चाहता हूँ । पडिक्कमिउं = प्रतिक्रमण करना, निवृत्त होना
( किस से ? ) इरियावहियाए = ऐर्यापथिकसम्बन्धी विराहणाए = विराधना से हिंसा से ( विराधना किस तरह होती है ? ) गमणागमणे = मार्ग' में जाते, श्राते पाणकमणे = प्राणियों को कुच लने से
वीयक्कमणे = बीजों को कुचलने से हरियक्कमणे = हरित वनस्पति को
कुचलने से
श्रोसा = श्रोस को
उत्तिंग = कीदीनाल या कीढ़ी आदि के बलको
पणग = सेवाल, काई को
दग= सचित्त जल को मट्टी = सचित्त पृथ्वी को
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मक्कडा संताणा = मकड़ी के जालों
को
संकमणे = कुचलने से, मसलने से
जे = जो भी
मे मैने
=
जीवा = जीव विराहिया = विशधित किए हों ( कौन जीव विराधित किए हों ? ) - एगिंदिया = एकेन्द्रिय बेइ दिया = द्वीन्द्रिय तेइ दिया = श्रीन्द्रिय चउरिंदिया = चतुरिन्द्रिय पंचिंदिया = पंचेन्द्रिय
( विराधना के प्रकार ) श्रभिया = सम्मुख धाते हुए
रोके हों
वतिया
धूलि आदि से ढाँपे हों लेसिया = भूमि आदि पर मसले हों
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