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दिवस-चश्मि-सूत्र
दिवसचरम और भवचरम में केवल चार श्रागार ही मान्य हैं। पारिष्ठापनिक आदि श्रागार यहाँ अभीष्ट नहीं हैं। कुछ लेखकों ने पारिष्ठानिका आदि आगारों का उल्लेख किया है, वह अप्रमाण समझना चाहिए।
यह चरमद्वय का प्रत्याख्यान, यदि तिविहाहार करना हो तो 'तिविहं पि आहारं-असणं खाइमं साइम' पाठ बोलना चाहिए । चउविहाहार का पाठ, ऊपर मूल सूत्र में लिखे अनुसार है।
पं० सुखलाल जी ने दिवस चरम में गृहस्थों के लिए दुविहाहार प्रत्याख्यान का भी उल्लेख किया है।
दिवस-चरम एकाशन श्रादि में भी ग्रहण किया जाता है, अतः प्रश्न है कि एकाशन आदि में दिवस चरम ग्रहण करने का क्या लाभ है ? भोजन आदि का त्याग तो एकाशन प्रत्याख्यान के द्वारा ही हो जाता है ? समाधान के लिए कहना है कि एकाशन श्रादि में श्राठ श्रामार होते हैं और इसमें चार । अस्तु, अागारों का संक्षेप होने से एकाशन आदि में भी दिवस चरम का प्रयोजन स्वतः सिद्ध है ।
मुनि के लिए जीवनपर्यन्त त्रिविधं त्रिविधेन रात्रि भोजन का त्याग होता है। अतः उनको दिवस चरम के द्वारा शेष दिन के भोजन का त्याम होता है, और रात्रि भोजन त्याग का अनुवादकत्वेन स्मरण हो जाता है । रात्रि भोजन त्यागी गृहस्थों के लिए भी यही बात है । जिनको रात्रि भोजन का त्याग नहीं है, उनको दिवस चरम के द्वारा शेष दिन और रात्रि के लिए भोजन का त्याग हो जाता है।
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