________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
३०६
श्रमण सूत्र
पौरुषी से कम ही होना चाहिए । ग्राप कहेंगे कि पौरुषी के कालमान से कम तो दो मुहूर्त भी हो सकते हैं ? फिर एक मुहूर्त ही क्यों ? उत्तर है कि नमस्कारिका में पौरुषी आदि अन्य प्रत्याख्यानों की अपेक्षा सत्र से कम, अर्थात् दो ही आकार हैं; अतः अल्पाकार होने से इसका कालमान बहुत थोड़ा माना गया है और वह परंपरा से एक मुहूर्त है। श्रद्धाप्रत्याख्यान का काल कम से कम एक मुहूर्त माना जाता है ।
नमस्कारिका, रात्रिभोजन दोष की निवृत्ति के लिए है । अर्थात् प्रातः काल दिनोदय होते ही मनुष्य यदि शीघ्रता में भोजन करने लगे और वस्तुतः सूर्योदय न हुआ हो तो रात्रि भोजन का दोष लग सकता है | यदि दो घड़ी दिन चढ़े तक के लिए श्राहार का त्याग नमस्कारिका के द्वारा कर लिया जाय तो फिर रात्रि भोजन की संभावना नहीं रहती | दूसरी बात यह है कि साधक के लिए तप की साधना करना आवश्यक है; प्रतिदिन कम से कम दो घड़ी का तप तो होना ही चाहिए । नमस्कारिका में यह नित्य प्रति के तपश्चरण का भाव भी अन्तर्निहित है ।
दूसरों को प्रत्याख्यान कराना हो तो मूल पाठ में 'पचखाइ' और 'वोसिरह' कहना चाहिए । यदि स्वयं करना हो, तो उल्लिखित पाठानुसार 'पक्खामि' और 'वोसिरामि' कहना चाहिए । आगे के पाठों में भी यह परिवर्तन ध्यान रखना चाहिए |
यही पाठ सांकेतिक अर्थात् संकेत पूर्वक किए जाने वाले प्रत्याख्यान का भी है । वहाँ केवल 'गंठिसहियं' या 'मुट्ठिसहियं' श्रादि पाठ नमुक्कार सहियं के आगे अधिक बोलना चाहिए । गंठिसहियं और मुट्ठिसहियं का यह भाव है कि जब तक बँधी हुई गाँठ अथवा मुट्ठी आदि न खोलूँ तब तक चारों आहार का त्याग करता हूँ ।
१ - 'गंठिसहियं, मुट्ठिसहियं' आदि सांकेतिक प्रत्याख्यान पाठ में 'महत्तरागारेणं सव्वसमाहिबत्तियागारेणं' ये दो आगार अधिक बोलने चाहिएँ । यह सांकेतिक प्रत्याख्यान अन्य समय में भी किया जा सकता
For Private And Personal