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सानावरण
भयादि-सूत्र
१६५ का ही प्रयोग करते हैं । उत्तराध्ययन सूत्र, समवायांग सूत्र और दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र में भी केवल मोहनीय स्थान कहा है । परन्तु भेदों का उल्लेख करते हुए अवश्य महामोह शब्द का प्रयोग हुअा है। 'महामोहं पकुव्वइ ।' सिद्धों के ३१ गुण
(१) क्षीण-मतिज्ञानावरण (२) क्षीणश्रु तज्ञानावरण (३) क्षीण अवधिज्ञानावरण (४) क्षीण मनःपर्ययज्ञानावरण (५) क्षीण केवल ज्ञानावरण ।
(६ } क्षीण चतुर्दर्शनावरण (७) क्षीण चतुर्दर्शनावरण (८) क्षीण अवधिदर्शनावरण (६) क्षीणकेवलदर्शनावरण (१०) क्षीणनिद्रा (११) क्षीण निद्रानिद्रा (१२) क्षीणप्रचला (१३) क्षीणप्रचला प्रचला (१४) क्षीणस्त्यानगृद्धि ।
(१५) क्षीण सातावेदनीय (१६) क्षीण असातावेदनीय । (१७) क्षीण दर्शन मोहनीय (१८) क्षीण चारित्र मोहनीय ।
(१६) क्षीण नैरयिकायु २० क्षीण तिर्यञ्चायु (२१) क्षीण मनुष्यायु (२२) क्षीण देवायु ।
(२३) जीण उच्च गोत्र (२४) क्षीण नीच गोत्र । (२५। क्षीण शुभ नाम (२६) क्षीण अशुभनाम ।
(२७) क्षीण दानान्तराय (२८ क्षीण लाभान्तराय । (२६ क्षीण भोगान्तमय (३० ' क्षीण उपभोगान्तराय (३१ क्षीण वीर्यान्तराय ।
[समवायांग] सिद्धों के गुणों का एक प्रकार और भी है। पाँच स स्थान, पाँच वण, दो गन्ध, पाँच रस, श्राठ स्पर्श, तीन वेद, शरीर, श्रासक्ति और पुनर्जन्म-इन सब इकत्तीस दोपों के क्षय से भी इकत्तीस गुण होते हैं।
[आचासंग] आदि गुण का अर्थ है---ये गुण सिद्धों में प्रारम्भ से ही होते हैं, यह नहीं कि कालान्तर में होते हों। क्योंकि सिद्धों की भूमिका क्रमिक विकास की नहीं है। प्राचार्य श्री शान्तिसूरि 'सिद्धाइगुण' का अर्थ
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