________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
२३०
श्रमण-सूत्र
नैयायिक
'नेत्राउयं' का संस्कृत रूप नैयायिक होता है। प्राचार्य हरिभद्र, नैयायिक का अर्थ करते हैं ..-'जो नयनशील है, ले जाने वाला है, वह नैयायिक है ।' सम्यग दर्शन आदि मोक्ष में ले जाने वाले हैं, अतः नैयायिक कहलाते हैं । 'नयनशीलं नैयायिकं मोक्षगमकमित्यर्थः ।।
श्री भावविजयजी न्याय का अर्थ 'मोक्ष' करते हैं। क्योंकि निश्चित आय = लाभ ही न्याय है, और ऐमा न्याय एक-मात्र मोक्ष ही है। साधक के लिए मोक्ष से बढ़कर और कौन सा लाभ है ? यह न्याय = मोक्ष ही प्रयोजन है जिनका, वे सम्यग दर्शन आदि नैयायिक कहलाते हैं । "निश्रित श्रायो लाभो न्यायो मुकिरित्यर्थः, स प्रयोजनमस्येति नैयायिकः ।"..--उत्तराध्ययनवृत्ति, अध्य० ४ । गा० ५। - श्राचार्य जिनदास नैयायिक का अर्थ न्यायाबाधित करते हैं । 'न्यायेन चरति नैयायिक, न्यायाबाधितमित्यर्थः' मम्यग दर्शन
आदि जैनधर्म सर्वथा न्यायसंगत हैं । केवल अागमोक्त होने से ही मान्य हैं, यह बात नहीं । यह पूर्ण तसिद्ध धर्म है । यही कारण है कि जैनधर्म तर्क से डरता नहीं है । अपितु तर्क का स्वागत करता है। शुद्ध-बुद्धि से धमतत्त्वों की परीक्षा करनी चाहिए । परीक्षा की कसौटी पर, यदि धर्म सत्य है, तो वह और अधिक कान्तिमान् होगा. प्रकाशमान होगा। वह सत्य ही क्या, जो परीक्षा की भाग में पड़कर म्लान हो जाय ? 'सत्ये नास्ति भयं क्वचित् ।' सत्य को कहीं भी भय नहीं है । ख ग सोना क्या कभी परीक्षा से घबराता है ? अतएव जैनधर्म की परीक्षा के लिए, उत्तराध्ययन सूत्र के केशी गौतम-सौंवाद में गणधर गौतम ने स्पष्टतः कहा है--पन्ना समिक्खए धम्मं ।' 'तर्कशील बुद्धि ही धर्म की परख करती है।' शल्य-कर्तन श्रागम की भाषा में शल्य का अर्थ है 'माया, निदान और मिथ्यात्व ।'
For Private And Personal